बुधवार, 15 मार्च 2023

अपनी समस्याओं के लिए हम ही ज़िम्मेदार

जिस प्रकार मकड़ी अपने लिए अपना जाल स्वयं बुनती है। उसे कभी-कभी बंधन समझती है तो रोटी-कलपती भी है किन्तु जब भी उसे वस्तुस्थिति की अनुभूति होती है तो समूचा मकड़-जाल समेट कर उसे गोली बना लेती है और पेट में निगल लेती है। अनुभव करती है कि सारे बंधन कट गए और जिस स्थिति में अनेकों व्यथा-वेदनाएँ सहनी पड़ रही थी, उसकी सदा-सर्वदा के लिए समाप्ति हो गई।

उसी प्रकार हर मनुष्य अपने लिए, अपने स्तर की दुनिया, अपने हाथों आप रचता है। उसमें किसी दूसरे का कोई हस्तक्षेप नहीं है। दुनिया की अड़चनें और सुविधायें तो धूप-छाँव की तरह आती-जाती रहती है।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 जीवन देवता की साधना-आराधना वांग्मय 2 पृष्ठ- 3.1

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