रविवार, 15 मई 2016

🌞 शिष्य संजीवनी (भाग 49) :-- सदगुरु से संवाद की स्थिति कैसे बनें

🔵 शिष्य संजीवनी के प्रत्येक सूत्र में अपनी एक खास विशिष्टता है। इसकी गहनता में जीवन का सुरीला संगीत है। संगीत का अर्थ है कि जीवन का परम रहस्य, स्वरों की भीड़- भाड़ नहीं है, न ही एक अराजकता है, न ही एक अव्यवस्था है, बल्कि सभी स्वर मिलकर एक ही तरंग, एक ही लय, एक ही इंगित, एक ही इशारा कर रहे हैं। जिन्दगी के परम केन्द्र में सभी स्वर परस्पर घुले- मिले हैं। कहीं कोई बैर- विरोध नहीं है। यह जो अव्यवस्था दिखाई पड़ती है, यह हमारे अन्धेपन के कारण है। और जो स्वरों का उपद्रव दिख रहा है, वह हमारे बहरेपन के कारण है। अपनी स्वयं की अक्षमता के कारण हम सभी स्वरों के बीच में बहती हुई समस्वरता का अनुभव नहीं कर पाते।
    
🔴 जबकि इसी अनुभूति में साधना है। इसी में शिष्य और सद्गुरु का मिलन है। इसी के रहस्य को उजागर करते हुए शिष्यत्व के साधना शिखर पर विराजमान जन कहते हैं- ‘‘सुने गए स्वर माधुर्य को अपनी स्मृति में अंकित करो। जब तक तुम केवल मानव हो, तब तक उस महागीत के कुछ अंश ही तुम्हारे कानों तक पहुँचते हैं। परन्तु यदि तुम ध्यान देकर सुनते हो, तो उन्हें ठीक- ठीक स्मरण रखो; जिससे कि जो कुछ तुम तक पहुंचा है, वह खो न जाए। और उससे उस रहस्य का आशय समझने का प्रयत्न करो, जो रहस्य तुम्हें चारों ओर से घेरे हुए है। एक समय आएगा जब तुम अपनी अन्तर्चेतना में सद्गुरु की वाणी की अनुभूति कर सकोगे। इसी परमवाणी में सर्वव्यापी अस्तित्त्व के संकेत हैं।
   
🔵 इन दिव्य संकेतों की स्वर लहरियों से स्वरबद्धता का पाठ सीखो। ध्यान दो इस सत्य पर कि जीवन की अपनी भाषा है और वह कभी मूक नहीं रहती और उसकी वाणी एक चीत्कार नहीं है, जैसा कि तुम भूलवश समझ लेते हो। वह तो एक महागीत है। उसे सुनो और उससे सीखो कि तुम स्वयं उस सुस्वरता के अंश हो। और उससे उस सुस्वरता के नियमों का पालन करना सीखो।’’ साधना का यह परम सूत्र सम्मोहक है और रहस्यमय भी। इसमें प्रवेश करने पर यात्रा का पथ मिलता है, सद्गुरु का द्वार खुलता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
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