रविवार, 31 जुलाई 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 4) 31 July 2016 (In The Hours Of Meditation)


🔴 यदि दिव्यत्व है तो -तत त्वम् असि। अर्थात् तुम वही हो! तुम्हारे- भीतर तो सर्वोच्च है उसे जानो। सर्वोच्च की पूजा करो और पूजा का सर्वोच्च प्रकार है यह ज्ञान कि तुम और- सर्वशक्तिमान अभिन्न हो। यह सर्वोच्च क्या है? ओ आत्मन जिसे तुम ईश्वर कहते हो वही।

🔵 सभी स्वप्नों को भूल जाओ। तुम्हारे भीतर विराजमान आत्मा के संबंध में सुनने के पश्चात तुम्हीं वह आत्मा हो यह समझो। समझने के पश्चात् देखो, देखने के पश्चात् उसे जानो, जानने के पश्चात् उसका अनुभव करो! तत त्वम असि। तुम वही हो !!

🔴 संसार से विरत हो जाओ। यह स्वप्नों का मूर्त स्वरूप है। सचमुच शरीर और संसार मिल कर ही तो स्वप्नों का नीड़ है। क्या तुम एक स्वप्न- द्रष्टा बनोगे? क्या तुम स्वप्न के बंधन में सदैव के लिए बँधे रहोगे? उठो जागो और तब तक न रुको जब तक कि तुम लक्ष्य पर न पहुँच जाओ!

🔵 शांति में! गभीरशांति में! जब केवल उनके ही शब्द सुन पडते हैं तब प्रभु यही कहते है हरि ओम तत सत्। शांति में प्रवेश करो। सब के परे, हाँ सभी रूपों में भी वही आत्मा व्याप्त है। उसका स्वभाव शांति है! अनिर्वचनीय शांति!!

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...