सोमवार, 1 अगस्त 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 5) 1 AUG 2016 (In The Hours Of Meditation)


🔴 शांति की घडियो मे ईश्वरीय आवाज कहती है- स्मरण रखो, सदैव- स्मरण रखो, पवित्र हृदय व्यक्ति ही ईश्वर का दर्शन पाते हैं। पवित्रता पहली आवश्यकता है। जैसे लोग जो अपनी इच्छाओं से चालित हैं अपनी वासनाओं के संबंध में उत्कट है उसी प्रकार तुम पवित्रता के लिए उत्कण्ठित होओ। पवित्रता उपलब्ध करने की तीव्र इच्छा रखो। गहराई और अध्यवसायपूर्वक पवित्रता की खोज करो। केवल यही प्रयोजनीय है। मेरे भक्त प्रह्लाद की मेरे प्रति प्रार्थना का स्मरण करो- 'प्रभु संसारी लोगों की क्षण भंगुर विषयो के प्रति जैसी आसक्ति है, जैसा प्रेम है, वही आसक्ति, वही प्रेम तुम मुझे अपने लिए दो।'

🔵 पवित्रता ईश्वर- सान्निध्य की ड्योढ़ी है। ईश्वर का चिन्तन करने के पूर्व पवित्रता का चिन्तन करो। पवित्रता वह चाबी है जिससे ध्यान रूपी द्वार जो सर्वशक्तिमान के घर ले जाते हैं खुलते है।

🔴 मेरी शक्ति के समुद्र में स्वयं को फेंक दो। चेष्टा न करो। चाह न रखो। जानो कि मैं हूँ। यह ज्ञान मेरी इच्छा के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ होकर तुम्हारा उद्धार करेगा। भयभीत न होओ। क्या तुम मुझमें नहीं हो?  क्या मैं तुममें नहीं हूँ? यह जान लो कि लोग जिसे इतना महान् समझते हैं वह एक दिन चला जाता है। मृत्यु जीवन के विभिन्न प्रकारों को निगलती हुई सर्वत्र विराजमान है। मृत्यु और परिवर्तन आत्मा को छोड़ कर अन्य सभी को जाल में फँसाते और बाँधते हैं। इसे जानो। पवित्रता ही इस ज्ञान की प्राप्ति का उपाय है। यह आधार- भित्ति है। पवित्रता के साथ निर्भयता आती है और आती है स्वतंत्रता और तुम्हारे स्वरूप की अनुभूति, जिसका कि सार मैं हूँ।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...