मंगलवार, 2 अगस्त 2016

👉 समाधि के सोपान (भाग 6) 2 AUG 2016 (In The Hours Of Meditation)


🔴 तूफान आने दो, किन्तु जब इच्छायें तुम्हे जलाये और मन चन्चल हो तब  मुझे पुकारो । मैं सुनूँगा क्योकि जैसा कि मेरे भक्त ने कहा है मैं चींटी की पदध्वनि भी सुनता हूँ। और मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। जो मुझे आंतरिकता पूर्वक पुकारते हैं मैं उनका त्याग नहीं करता। केवल आंतरिकता नहीं? अध्यवसाय पूर्वक मुझे पुकारो।

🔵 मैं विश्व नहीं, उसके पीछे की आत्मा हूँ। विश्व मेरे लिये मृतदेह के समान है। मेरी अभिरुचि  केवल आत्मा में है। वस्तुओं की बाहरी विशालता से भ्रमित न होओ। दिव्यता ने तो रूप में है ओर न ही विचारों में। वह शुद्ध, मुक्त, आध्यात्मिक, आनंदपूर्ण, रूपरहित, विचार रहित, चेतना में हे जो कलुष, पारा, बंधन या सीमा से परिचित नहीं है, परिचित हो भी नहीं सकता। हे आत्मन्! अंतर के अंतर में तुम वही हो। इसकी अनुभूति तुम्हें होगी। इसका होना अनिवार्य है ।

🔴 क्योंकि जीवात्मा के जीवन का यही लक्ष्य है। स्मरण रखो मैं तुम्हारे साथ हूँ। मै ईश्वर तुम्हारे साथ- हूँ। तुम्हारी सब दुर्बलताओं के लिए  मैं शक्ति हूँ। तुम्हारे पापों के लिए  मैं क्षमा हूँ। मेरी खोज मै मैं तुम्हारा प्रेम हूँ। मैं ही तू हूँ। आत्मा के संबंध मैं अन्य सभी विचारों को त्याग दो क्योंकि इस विचार में कि तुम्हारी आत्मा मेरी आत्मा से किसी भी प्रकार भिन्न है सभी अज्ञान और दुर्बलताएँ निहित हैं। ओ ज्योति स्वरूप! उठो, जानो कि मैं ही तुम्हारी  आत्मा हूँ।

🔵 और पवित्रता ही मेरे सान्निध्य का पथ है। इसी में तुम्हारी मुक्ति हैं। हरि ओम तत् सत्। शांति! शांति!! शांति!!!

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...