रविवार, 4 सितंबर 2016

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 32)


🔵 तपस्या का एक प्रकार है जो मैं तुम्हारे लिए निर्दिष्ट करूँगा। भयंकर का ध्यान करो क्योंकि वह सर्वत्र है। एक सन्त ने ठीक ही कहा है, जिस किसी वस्तु का तुम स्पर्श करते हो वह दुःख ही है। इसे निराशा के अर्थ में न लो किन्तु एक विजयी के अर्थ में ग्रहण करो। सभी आध्यात्मिक अनुभवों में किसी न किसी रूप में तुम इस भयंकर की पूजा पाओगे। वस्तुतः  यह भयंकर की पूजा नहीं है। जो इन्द्रियों में बद्ध है उसी के लिये यह भयंकर है। सुखकर एवं भयंकर -शब्दों का अर्थ उसी व्यक्ति के लिए है जो कि देहबुद्धि का क्रीतदास है किन्तु तुम इससे ऊपर उठ चुके हो, कम से कम विचारों और आकांक्षाओं में, अनुभूति में न सही।

🔵 भयंकर का ध्यान करने से तुम निश्चित रूप से इन्द्रियजनित वासनाओं को जीत सकोगे। तुम आध्यात्मिक जीवन का आलिंगन करोगे। तुम शुद्ध और मुक्त हो जाओगे। तथा मैं, जो जीवन के छोर पर हूँ  उससे तुम अधिक एकत्व का अनुभव करते जाओगे। जीवन को शरीर मात के रूप में न देखो, मानसिक रूप में उसका अध्ययन करो। आध्यात्मिक रूप में उसकी अनुभूति करो तब आध्यात्मिक जीवन का समस्त तात्पर्य तुम्हारे सामने स्पष्ट हो जायेगा और तब तुम्हें ज्ञात होगा कि संतगण क्यों अपरिग्रह तथा पवित्रता से प्रेम करते हैं तथा युद्ध या पलायन द्वारा ऐसी सभी वस्तुओं से बचते हैं जिसमें काम कांचन का रस है।

🔴 इतना पर्याप्त है। जो मैंने कहा है उसका पालन करो। इस पर तब तक विचार करो जब तक कि तुम्हारा स्नायुजाल उसे ग्रहण न कर ले तथा इन विचारों का सौरभ एवं उसकी उदात्तता और दिव्यानन्द तुम्हारी नाड़ियों में बहने न लगे। अपने व्यक्तित्व का नवीनीकरण करो तथा स्वयं को पूर्ण कर लो।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...