शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 36)

🔵 ध्यान की घड़ियों में पुन: वह वाणी कह उठी- वत्स!, तुम्हें शांति प्राप्त हो। न तो इहलोक में, न परलोक में भय का कोई कारण है। सभी वस्तुओं को व्याप्त करता हुआ प्रेम का महाभाव विद्यमान है और उस प्रेम के लिए ईश्वर के अतिरिक्त और कोई दूसरा नाम नहीं है। ईश्वर तुमसे दूर नहीं है। वह देश की सीमा में बद्ध नहीं है क्योंकि वह निराकार तथा अन्तर्यामी है। स्वयं को पूर्णतः उसके प्रति समर्पित कर दो। शुभ तथा अशुभ तुम जो भी हो सर्वस्व उसको समर्पित कर दो। कुछ भी बचा न रखो। इस प्रकार के समर्पण के द्वारा तुम्हारा संपूर्ण चरित्र बन जायेगा। विचार करो प्रेम कितना महान है। यह जीवन से भी बड़ा तथा मृत्यु से भी अधिक सशक्त है। ईश्वरप्राप्ति के सभी मार्गों में यह सर्वाधिक शीघ्रगामी है। 

🔵 आत्मनिरीक्षण क्षण का पथ कठिन है। प्रेम का पथ सहज है। शिशु के समान बनो। विश्वास और प्रेम रखो तब तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। धीर और आशावान बनी तब तुम सहज रूप से जीवन की सभी परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ हो सकोगे। उदारहृदय बनो। शुद्र अहं तथा अनुदारता के सभी विचारों को निर्मूल कर दो। पूर्ण विश्वास के साथ स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दो। वे तुम्हारी सभी बातों को जानते हैं। उनके ज्ञान पर विश्वास करो। वे कितने पितृतुल्य हैं। सर्वोपरि वे कितने मातृतुल्य हैं। अनन्त प्रभु अपनी अनन्तता में तुम्हारे दुःख के सहभागी हैं। उनकी कृपा असीम है। यदि तुम हजार भूलें करो तो भी प्रभु तुम्हें हजार बार क्षमा करेंगे। -यदि दोष भी तुम पर आ पड़े तो वह दोष नहीं रह जायेगा। 

🔴 यदि' तुम प्रभु से प्रेम करते हो तो अत्यन्त भयावह अनुभव भी तुम्हें तुम्हारे प्रेमास्पद प्रभु के संदेशवाहक ही प्रतीत होंगे। वस्तुत: प्रेम - द्वारा ही तुम ईश्वर को प्राप्त करोगे। क्या माँ सर्वदा प्रेममयी नहीं होती? वह आत्मा का प्रेमी  भी उसी प्रकार है। विश्वास करो! केवल विश्वास करो! फिर तुम्हारे लिए सब कुछ ठीक हो जायेगा। तुमसे जो भूलें हो गई उनसे भयभीत न होओ। मनुष्य बनो। जीवन का साहस- पूर्वक सामना करो। जो पूरी हो होने दो। तुम शक्तिशाली बनो। स्मरण रखो कि तुम्हारे पीछे अनन्त शक्ति है। स्वयं ईश्वर तुम्हारे साथ हैं। फिर तुम्हें क्या भय हो सकता है?

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...