बुधवार, 14 सितंबर 2016

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 38)


ध्यान की शांति में उस वाणी ने कहा: -

🔵 संसार के बंधन भयंकर हैं। माया के जाल से छूटना कठिन है। जीवन हमें सिखाता है, सच्चा जीवन जीने के लिए हमें जीवन के पार जला होगा। मृत्यु पर विजय प्राप्त करनी होगी। यही सबसे महत् कार्य है, तथा इस विजय का पथ है, उन शारीरिक वृत्तियों को जीतना जो हमें मृत्यु की ओर ले जाती हैं वत्स! मैं तुमसे गंभीरता पूर्वक कहता हूँ कि जो कुछ भी वस्तुएँ तुम्हें प्रलोभित करने के लिए आती हैं उनके प्रति सजगता पूर्वक सावधान रहो। आध्यात्मिक उन्नति का एक मात्र पथ है प्रलोभनों का पूर्वाभास पा लेना। अपने मन पर कड़ी नजर रखो। जो श्रेष्ठ और महान् हैं सदा उसी में व्यस्त रहो। इस प्रकार धीरे धीरे तुम स्वयं को मुक्त कर लोगे।

🔴 जब प्रलोभन आता हैं तब मन को यह समझने का समय मिलने के पूर्व ही कि क्या हो रहा है, वह मानों अकस्मात् ही आ जाता है और व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप में शीघ्रता पूर्वक प्रलोभन के सामने, हार जाने की स्थिति में आ जाता है। सभी संत यह जानते हैं इसलिए वे अशुभ विचारों का पूर्वानुमान कर उन्हें उठने से रोकने तथा उनकी शक्ति को क्षीण करने के लिए दृढ़ता पूर्वक शुभ विचारों का चिन्तन करते हैं। विचारों के द्वारा ही व्यक्ति बनता या बिगड़ता है। अत: सावधान रहो जिससे कि तुम शुभ विचारों का ही चिंतन मनन करते रहो।

🔵 स्मरण रखो मन को ही तुम्हें डूबने से सदा बचाये रखना है। उसे कभी अकर्मण्य न रहने दो। अकर्मण्यता अशुभ का दूसरा पक्ष है, यह वह घोंसला है जिसमें अशुभ अत्यन्त सफलता पूर्वक संवर्धित होता है। अकर्मण्यता से सावधान रहो। जीवन को गंभीरता पूर्वक ग्रहण करो। साय की कमी तथा तुम्हारे सम्मुख आत्मसाक्षात्कार का जो महान कार्य है उसकी गुरुता को समझो। इसी क्षण तुम्हारा समय है। इसी क्षण तुम्हारा अवसर है। अभी तुम जिन परिस्थितियों की सीमाओं तथा संघर्ष में हो, यदि असावधानी पूर्वक तुमने स्वयं को इससे अधिक बुरी परिस्थितियों की सीमाओं और संघर्षों में बह जाने दिया तो तुम्हें अत्यन्त कटु पश्चाताप करना पड़ेगा। उपने वर्तमान जीवन को आत्मजयी बना कर स्वयं को अधिक अच्छे भविष्य का, अधिक उत्तम जन्म का आधिकारी बना लो।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 37)

🔵 अभी, यही, अमरत्व के लिए संघर्ष करो। मन को प्रशिक्षित करो। वही एकमात्र महत्त्वपूर्ण कार्य है। जीवन का महान अर्थ तथा उद्देश्य ही वह है। यद्यपि जब कि आत्मा मानों हाड़मांस के पिंजरे मे आबद्ध -है तब भी अभी ही कह अवसर है जबकि देहात्मबुद्धि को जीत कर अमरत्व का प्रदर्शन किया जाय। स्वयं को अमरत्व का अधिकारी बनाओ। जिन्होंने देहात्मबुद्धि को त्याग दिया है देवता भी उनकी पूजा करते हैं। मृत्यु केवल एक भौतिक घटना मात्र है। मन का जीवन बहुत लम्बा होता है तथा आत्मा का जीवन असीम और अनन्त है।

🔴 तब यह कितना आवश्यक है कि तुम महान् विचारों का मनन करो तथा इस प्रकार अपने आध्यात्मिक विकास को त्वरित करो। बाह्य वस्तुओं को त्याग दो। यदि कोई व्यक्ति समस्त विश्व को जीत ले तो भी उसे आत्मविजय करनी होगी। उसे स्वयं को जानना ही होगा क्योंकि आत्मज्ञान ही जीवन का लक्ष्य है। ज्ञान या अज्ञान के रूप में यही वह लक्ष्य है जो जीवन को अर्थ देता है। यही वह लक्ष्य है जो जीने की प्रक्रिया तथा आत्मविकास का स्पष्टीकरण करता है। वही शान वास्तव में मूल्यवान है जो कि अन्तरात्मा को उन्नति की ओर ले जाता है। अत: वीरतापूर्वक स्वयं को आत्मज्ञान प्राप्ति के कार्य में नियुक्त कर दो। हो सकता है कि रास्ता लम्बा हो पर -लक्ष्य के विषय में कोई सन्देह नहीं है। सभी शब्दों को त्याग कर उसी के प्रति सचेष्ट हो जाओ जो कि सर्वोच्च है।

🔵 अपने पैरों पर खडे़ हो जाओ। यदि आवश्यक हो तो समस्त विश्व की भी अवज्ञा कर दो। अन्ततः कौन सी वस्तु तुम्हें हानि पहुँचा सकती है ? परमात्मा के साथ ही सन्तुष्ट रहो। दूसरे लोग बाहरी खजाने की खोज में लगे हैं तुम आन्तरिक खजाने की खोज करो। समय आयेगा जब तुम जान पाओगे कि समस्त पृथ्वी का साम्राज्य आत्मज्ञान की महिमा के सामने धूल के समान है। उठो, इस महत् प्रयत्न के लिए कमर कस लो।

🔴 हे महाप्राण! आओ दिव्य जीवन ही तुम्हारी विरासत है। तुम्हारी संपत्ति को कोई चुरा नहीं सकता। तुम्हारी संपत्ति सर्वशक्तिमान आत्मा की है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...