शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

👉 समाधि के सोपान Samadhi Ke Sopan (भाग 51)

ध्यान की दूसरी घड़ी में गुरुदेव ने कहा: -

🔵 वत्स! मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है, अत: जीवन का सदुपयोग कर लो। जब तुम्हारे मन में कोई उदात्त प्रेरणा जागे तो उसे लोलुपता पूर्वक पकड़ लो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे भूल जाने के पाप के कारण वह सदैव के लिए लुप्त हो जाय। क्योंकि किसी भी आदर्श सिद्धान्त की अनुभूति का एक व्यावहारिक पथ है। अनुभूति की पद्धति भी उतनी ही महत्त्व है जितनी कि स्वयं तत्व की धारणा। अत्यल्प अभ्यास ही क्यों न उसकी तुलना में हजार बड़ी बातों का क्या महत्त्व है? बातों से भावनाएँ जाग सकती हैं किन्तु उस सिद्धांत की अनुभूति के लिए यदि तुम आवश्यक उत्तरदायित्व ग्रहण न करो तो समय तथा भावना व्यर्थ ही नष्ट हुई।    

🔴 अपने हृदय में कपट न रखो। अपनी अकर्मण्यता पर सोने की चादर डाल कर उसे शरणागति न कहो। निश्चित जान -लो आध्यात्मिक भावनाओं के प्रति तुम्हारी प्रतिक्रिया की कमी के पीछे शारीरिक सुख- सुविधा की अनुशोचना है। यदि तुम्हारे मन में कोई कठिन आध्यात्मिक साधना करने की बात पैठ जाय तो बहुत संभव है तुम्हारा शरीर कह उठे, मन, क्या यह आरामदायक होगा? ओह! शारीरिक कारणों से तुम अपने आदर्श से कितने नीचे गिर गये हो!

🔵 वत्स! सांसारिक संघर्षों में जितने साहस की आवश्यकता है उतना ही साहस आध्यात्मिक जीवन के लिए भी आवश्यक है। कृपण व्यक्ति स्वर्ण- संग्रह में जितना अध्यवसाय करता है, सैनिक शत्रु पर आक्रमण करने के लिए जितना साहस रखता है, अविनाशी कोष को प्राप्त करने के लिए सदैव के लिए शरीर को जीत लेने के लिए देहात्मबुद्धि को जीत लेने के लिए तुम्हें उतने ही अध्यवसाय की, उतने ही महान साहस की आवश्यकता। किसी भी प्रकार की अनुभूति के पीछे रहस्य है, अदम्य साहस, सर्वथा भयहीन साहस। आत्मविश्लेषण की क्षमता बढ़ाओ तब तुम देख पाओगे कि जब कभी तुम त्यागपूर्ण जीवन का  साहसपूर्वक पालन करने में असफल होते हो तो वह इसलिये कि तुम्हारा शरीर शुद्र स्वार्थपूर्ण नश्वर दैहिक इच्छाओं को पूर्ण करना चाहता है।  

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...