गुरुवार, 10 नवंबर 2016

👉 हमारी युग निर्माण योजना (भाग 15)

🌹 युग-निर्माण योजना का शत-सूत्री कार्यक्रम

🔵 9. खुली वायु में रहिये —रात को जल्दी सोने और प्रातः जल्दी उठने की आदत डाली जाय। इससे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और सवेरे के समय का जिस कार्य में भी उपयोग किया जाय उसी में सफलता मिलती हैं। प्रातः टहलने, व्यायाम एवं मालिश करने के उपरांत रगड़-रगड़ कर नहाने का अभ्यास प्रत्येक स्वास्थ्य के इच्छुक को करना चाहिये। सवेरे खुली हवा में टहलने वाले और व्यायाम करने वालों का स्वास्थ्य कभी खराब नहीं होने पाता। जो स्त्रियां टहलने नहीं जा सकती उन्हें चक्की पीसनी चाहिए या ऐसा ही कोई पसीना निकलने वाला कड़ा काम करना चाहिये।

🔴 10. ब्रह्मचर्य का पालन ब्रह्मचर्य का समुचित ध्यान रखा जाय। विवाहितों और अविवाहितों को मर्यादाओं का समुचित पालन करना चाहिये। इस सम्बन्ध में जितनी कठोरता बरती जायगी स्वास्थ्य उतना ही अच्छा रहेगा। बुद्धिजीवियों और छात्रों के लिये तो यह और भी अधिक आवश्यक है क्योंकि इन्द्रिय असंयम से मानसिक दुर्बलता आती है और उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में भारी अड़चन पड़ती है।

🔵 यह दस साधारण नियम हैं जिनका व्यक्तिगत जीवन में प्रयोग करने के लिये हममें से हर एक को अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुसार अधिकाधिक प्रयत्न करना चाहिये। परिवार के लोगों को इन स्वास्थ्य मर्यादाओं को पालन करने के लिये प्रशिक्षित करना चाहिये। जो लोग अपने सम्पर्क में आयें उन्हें भी इस अमृत औषधियों का अवलम्बन करने के लिये प्रेरणा देनी चाहिये।

🔴 बदले हुये दृष्टिकोण को अपनाने से स्वास्थ्य की समस्या हल हो सकती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य की समस्या का हल इन्हीं तथ्यों को अपनाने से होगा। इसलिये धर्म कर्तव्यों की तरह ही इन आरोग्य मर्यादाओं का हमें पालन करना चाहिये और धर्म प्रचार की भावना से ही इन तथ्यों को अपनाने के लिये दूसरों को प्रेरित करना चाहिये।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌿🌞     🌿🌞     🌿🌞

👉 सफल जीवन के कुछ स्वर्णिम सूत्र (भाग 1)

🌹 समय का सदुपयोग करना सीखें

🔵 जीवन क्या है? इसका उत्तर एक शब्द में अपेक्षित हो तो कहा जाना चाहिए—‘समय’। समय और जीवन एक ही तथ्य के दो नाम हैं। कोई कितने दिन जिया? इसका उत्तर वर्षों की काल गणना के रूप में ही दिया जा सकता है। समय की सम्पदा ही जीवन की निधि है। उसका किसने किस स्तर का उपयोग किया, इसी पर्यवेक्षण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसका जीवन कितना सार्थक अथवा निरर्थक व्यतीत हुआ।

🔴 शरीर अपने लिए ढेरों समय खर्च करा लेता है। आठ-दस घण्टे सोने सुस्ताने में निकल जाते हैं। नित्य कर्म और भोजन आदि में चार घण्टे से कम नहीं बीतते। इस प्रकार बाहर घण्टे नित्य तो उस शरीर का छकड़ा घसीटने में ही लग जाते हैं जिसके भीतर हम रहते और कुछ कर सकने के योग्य होते हैं। इस प्रकार जिन्दगी का आधा भाग तो शरीर अपने ढांचे में खड़ा रहने योग्य बनने की स्थिति बनाये रहने में ही खर्च हो लेता है।

🔵 अब आजीविका का प्रश्न आता है। औसत आदमी के गुजारे की साधन सामग्री कमाने के लिए आठ घण्टे कृषि, व्यवसाय, शिल्प, मजदूरी आदि में लगा रहना पड़ता है। इसके साथ ही पारिवारिक उत्तरदायित्व भी जुड़ते हैं। परिजनों की प्रगति और व्यवस्था भी अपने आप में एक बड़ा काम है जिसमें प्रकारान्तर से ढेरों समय लगता है। यह कार्य भी ऐसे हैं जिनकी अपेक्षा नहीं हो सकती। इस प्रकार आठ घण्टे आजीविका और चार घण्टे परिवार के साथ बिताने में लगने से यह किश्त भी बारह घण्टे की हो जाती है। बारह घण्टे नित्य कर्म, शयन और बारह घण्टे उपार्जन परिवार के लिए लगा देने पर पूरे चौबीस घण्टे इसी तरह खर्च हो जाते हैं जिसे शरीर यात्रा ही कहा जा सके। औसत आदमी इस भ्रमण चक्र में निरत रहकर दिन गुजार देता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 मैं क्या हूँ? What Am I? (भाग 25)

🌞 दूसरा अध्याय

🔴 कुछ जिज्ञासु आत्म-स्वरूप का ध्यान करते समय 'मैं' को शरीर के साथ जोड़कर गलत धारणा कर लेते हैं और साधन करने में गड़बड़ा जाते हैं। इस विघ्न को दूर कर देना आवश्यक है अन्यथा इस पंचभूत शरीर को आत्मा समझ बैठने पर तो एक अत्यन्त नीच कोटि का थोड़ा सा फल प्राप्त हो सकेगा।

🔵 इस विघ्न को दूर करने के लिए ध्यानावस्थित होकर ऐसी भावना करो कि मैं शरीर से पृथक् हूँ। उसका उपयोग वस्त्र या औजार की तरह करता हूँ। शरीर को वैसा ही समझने की कोशिश करो, जैसा पहनने के कपड़े को समझते हो। अनुभव करो कि शरीर को त्यागकर भी तुम्हारा 'मैं' बना रह सकता है। शरीर को त्यागकर और ऊँचे स्थान से उसे देखने की कल्पना करो। शरीर को एक पोले घोंसले के रूप में देखो, जिसमें से आसानी के साथ तुम बाहर निकल सकते हो।

🔴 ऐसा अनुभव करो कि इस खोखले को मैं ही स्वस्थ, बलवान, दृढ़ और गतिवान बनाये हुए हूँ, उस पर शासन करता हूँ और इच्छानुसार काम में लाता हूँ। मैं शरीर नहीं हूँ, वह मेरा उपकरण मात्र है। उसमें एक मकान की भाँति विश्राम करता हूँ।
देह भौतिक परमाणुओं की बनी हुई है और उन अणुओं को मैंने ही इच्छित वेश के लिए आकर्षित कर लिया है। ध्यान में शरीर को पूरी तरह भुला दो और 'मैं' पर समस्त भावना एकत्रित करो, तब तुम्हें मालूम पड़ेगा कि आत्मा शरीर से भिन्न है। यह अनुभव कर लेने के बाद जब तुम 'मेरा शरीर' कहोगे तो पूर्व की भाँति नहीं, वरन् एक नये ही अर्थ में कहोगे।

🔵 उपरोक्त भावना का तात्पर्य यह नहीं है कि तुम शरीर की उपेक्षा करने लगो। ऐसा करना तो अनर्थ होगा। शरीर को आत्मा का पवित्र मन्दिर समझो, उसकी सब प्रकार से रक्षा करना और सुदृढ़ बनाये रखना तुम्हारा परम पावन कर्तव्य है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/mai_kya_hun/part2.4

👉 हमारी युग निर्माण योजना (भाग 14)

🌹 युग-निर्माण योजना का शत-सूत्री कार्यक्रम

🔵 6. हानिकारक पदार्थों से दूर रहें— मांस, मछली, अण्डा, पकवान, मिठाई, चाट, पकौड़ी जैसे हानिकारक पदार्थों से दूर ही रहना चाहिये। चाय, भांग, शराब आदि नशों को स्वास्थ्य का शत्रु ही माना गया है। तमाखू खाना-पीना, सूंघना, पान चबाना आदि आदतें आर्थिक और शारीरिक दोनों दृष्टि से हानिकारक हैं। वासी-कूसी, सड़ी-गली, गन्दगी के साथ बनाई हुई वस्तुओं से स्वास्थ्य का महत्व समझने वालों को बचते ही रहना चाहिए।

🔴 7. भाप से पकाये भोजन के लाभ— दाल-शाक पकाने में भाप की पद्धति उपयोगी है। खुले मुंह के बर्तन में तेज आग से पकाने से शाक के 70 प्रतिशत जीवन-तत्व नष्ट हो जाते हैं इस क्षति से बचने के लिये कुकर जैसी भाप से पकाने की पद्धति अपनानी चाहिए। इसी प्रकार हाथ की चक्की का पिसा आटा काम में लाना चाहिए। मशीन की चक्कियों और भाप से पकाने के बर्तनों का घर-घर प्रचलन होना चाहिये। ढीले और कम कपड़े पहनने चाहिये। सर्दी-गर्मी का प्रभाव सहने की क्षमता बनाये रहनी चाहिये। चिन्ता और परेशानी से चिन्तित न रहकर हर घड़ी प्रसन्न मुद्रा बनाये रहनी चाहिए।

🔵 8. स्वास्थ्य रक्षा के लिए सफाई आवश्यक है— सफाई का पूरा ध्यान रखा जाय। शरीर को अच्छी तरह घिसकर नहाना चाहिए शरीर को स्पर्श करने वाले कपड़े रोज धोने चाहिये। बिस्तरों को जल्दी-जल्दी धोते रहा जाय। धूप में तो उन्हें नित्य ही सुखाया जाय। घरों में ऐसी सफाई रखनी चाहिए कि मकड़ी, मच्छर, खटमल, पिस्सू, जुए, चीलर, छिपकली, छछूंदर, चूहे, चमगादड़, घुन आदि बढ़ने न पावें। मल-मूत्र त्यागने के स्थानों की पूरी तरह सफाई रखी जाय। नालियां गन्दी न रहने पावें। खाद्य पदार्थों को ढक कर रखा जाय और सोते समय मुंह ढका न रहे।

🔴 मकान में इतनी खिड़कियां और दरवाजे रहें कि प्रकाश और हवा आने-जाने की समुचित गुंजाइश बनी रहे। बर्तनों को साफ रखा जाय और उनके रखने का स्थान भी साफ हो। दीवार और फर्शों की जल्दी-जल्दी लिपाई, पुताई, धुलाई करते रहा जाय। सफाई का हर क्षेत्र में पूरा-पूरा ध्यान रखा जाय। हर भोजन के बाद कुल्ला करना, रात को सोते समय दांत साफ करके सोना, अधिक ठण्डे और गरम पदार्थ न खाना दांतों की रक्षा के लिए आवश्यक है। जो इन नियमों पर ध्यान नहीं देते उनके दांत जल्दी ही गिरने और दर्द करने लगते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌿🌞     🌿🌞     🌿🌞

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...