गुरुवार, 20 जुलाई 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 32)

🌹  समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।

🔴 सुसंस्कारिता का तीसरा पक्ष है- जिम्मेदारी मनुष्य अनेकानेक जिम्मेदारियों से बँधा हुआ है। यों गैर जिम्मेदार लोग कुछ भी कर गुजरते हैं, किसी भी दिशा में चल पड़ते हैं। अपने किन्हीं भी उत्तरदायित्वों से निर्लज्जतापूर्वक इंकार कर सकते हैं, पर जिम्मेदार लोगों को ही अपने अनेक उत्तरदायित्वों का सही रीति से, सही समय पर निर्वाह करना पड़ता है। स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की, जीवन सम्पदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की, लोक परलोक को उत्कृष्ट बनाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी जो निभाना चाहते हैं, वे ही संतोष, यश और आरोग्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

🔵 पारिवारिक जिम्मेदारियाँ समझने वाले आश्रितों को स्वावलम्बी, सद्गुणी बनाने में निरत रहते हैं और संतान बढ़ाने के अवसर आने पर फूँक- फूँ क कर कदम रखते हैं। हजार बार सोचते- समझते हैं और विचार करते हैं कि अभ्यागत को बुलाने के लिए उपयुक्त सामग्री, आश्रितों और असमर्थों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने में संकीर्ण स्वार्थपरता उन्हें बाधा नहीं डालती।

🔴 पेट और प्रजनन तक ही मनुष्य की सीमा नहीं है। धर्म और संस्कृति के प्रति, विश्व मानवता के प्रति, मनुष्य के सामाजिक एवं सार्वभौम उत्तरदायित्व जुड़े हैं, यहाँ तक कि अन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों के प्रति भी। उन सभी के संबंध में दायित्वों एवं कर्तव्यों के निर्वाह की चिंता हर किसी को रहनी चाहिए। यह कार्य तभी संभव है, जब अपनी संकीर्ण स्वार्थपरता पर अंकुश लगाया जाए। औसत व्यावहारिक स्तर का निर्वाह स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाए।

🔵 यह लोभ, मोह, अहंकार का, वासना, तृष्णा और संकीर्ण स्वार्थपरता का घटाटोप ऊपर छाया होगा, तो फिर नासमझ बच्चों का मन, न तो उस स्तर का सोचेगा और न सयानों से लोकमंगल के लिए कुछ निकालते बन पड़ेगा। आवश्यकताएँ तो कोई थोड़े श्रम, समय में पूरी कर सकता है, पर वैभव जन्य भौतिक महत्त्वाकाँक्षाएँ तो ऐसी हैं जिन्हें पूरी कर सकना रावण, हिरण्यकश्यपु, सिकंदर आदि तक के लिए संभव नहीं हुआ, फिर सामान्य स्तर के लोगों की तो बात ही क्या है? वे हविश की जलती चिताओं वाली कशमकश में आजीवन विचरण करते रहते हैं। भूत- पलीत की तरह डरते- डराते समय गुजारते और अन्ततः असंतोष तथा पाप की चट्टानों ही सिर पसर लादकर विदा होते हैं। 

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.44

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.7

👉 भगवान शिव और उनका तत्त्वदर्शन (भाग 5)

🔵 शंकर जी का विवाह हुआ तो लोगों ने कहा कि किसी बड़े आदमी को बुलाओ, देवताओं को बुलाओ। उन्होंने कहा नहीं, हमारी बारात में तो भूत-पलीत ही चलेंगे। रामायण का छंद है—‘तनु क्षीन कोउ अति पीत पावन कोउ अपावन तनु धरे।’ शंकर जी ने भूत-पलीतों का, पिछड़ों का भी ध्यान रखा और अपनी बारात में ले गये। आपको भी इनको साथ लेकर चलना है।

🔴 शंकर जी के भक्तों! अगर आप इन्हें साथ लेकर चल नहीं सकते तो फिर आपको सोचने में मुश्किल पड़ेगी, समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और फिर जिस आनन्द में और खुशहाली में शंकर के भक्त रहते हैं, आप रह नहीं पाएँगे। जिन शंकर जी के चरणों में आप बैठे हुए हैं, उनसे क्या कुछ सीखेंगे नहीं? पूजा ही करते रहेंगे आप! यह सब चीजें सीखने के लिए ही हैं। भगवान् को कोई खास पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती।

🔵 शंकर भगवान की सवारी क्या थी? बैल। वह बैल पर सवार होते हैं। बैल उसे कहते हैं, जो मेहनतकश होता है, परिश्रमी होता है। जिस आदमी को मेहनत करनी आती है वह चाहे भारत में हो, इंग्लैण्ड, फ्रांस या कहीं का भी रहने वाला क्यों न हो—वह भगवान की सवारी बन सकता है। भगवान सिर्फ उनकी सहायता किया करते हैं जो अपनी सहायता आप करते हैं। बैल हमारे यहाँ शक्ति का प्रतीक है, हिम्मत का प्रतीक है।

🔴 आपको हिम्मत से काम लेना पड़ेगा और अपनी मेहनत तथा पसीने के ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा, अपनी अक्ल के ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा, आपके उन्नति के द्वार और कोई नहीं खोल सकता, स्वयं खोलना होगा। भैंसे के ऊपर कौन सवार होता है—देखा आपने शनीचर। भैंसा वह होता है जो काम करने से जी चुराता है। बैल-हमेशा से शंकर जी का बड़ा प्यारा रहा है। वह उस पर सवार रहे हैं, उसको पुचकारते हैं, खिलाते-पिलाते, नहलाते-धुलाते, और अच्छा रखते हैं। हमको और आपको बैल बनना चाहिए, यह शंकर जी की शिक्षा है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 मैं नारी हूँ (भाग 2)

🔴 गर्वित पुरुष जब सिंह, व्याघ्र आदि हिंस्र प्राणियों की अपेक्षा और भी अधिक हिंस्र हो जाता है, कठोरता के साथ मिलते मिलते उसकी कोमल वृत्तियाँ जब सूख जाती हैं। जब वह राक्षसी वृत्तियों का सहारा लेकर जगत को चूर चूर कर डालने के लिए उतारू हो जाता है। तब उस शुष्क मरुभूमि में जल की सुशीतल धारा कौन बहाती है ? मैं ही, उसकी सहधर्मिणी ही। उसको, अपने पास बैठाकर अपना अपनत्व उसमें मिलाकर मैं उसे कोमल करती हूँ। मेरी शक्ति अप्रतिहत है। प्रयोग करने की कला जानने पर वह कभी व्यर्थ नहीं जाती।

🔵 बाहर के जगत में मेरे कर्तव्य का विस्तार होते हुए भी मैं अपने घर को नहीं भूलती। वह मेरे पिता, पति, भाई और पुत्र की आश्रय भूमि हैं उन्हें यहाँ मेरी सुशीतल छाया नहीं मिलेगी, तो वे विश्रान्ति कहाँ पाएंगे। उनका समूचा अस्तित्व मेरी गोद में अनायास समा जाता है। यही कारण है कि मेरी कर्मभूमि उनकी कर्मभूमि से कहाँ विशाल है। पुरुष जिस काम को नहीं कर सकता, उसको मैं अनायास ही कर सकती हूँ प्रमाण, पुरुष के अभाव में संसार चल सकता है परन्तु मेरे अभाव में अचल हो जाता है सब रहने पर भी कुछ नहीं रहता।

🔴 मैं पढ़ती हूँ, सन्तान को शिक्षा देने के लिए , पति के थके मन को शान्ति देने के लिए। मेरा ज्ञान मानव जीवन में विवेक का प्रकाश फैलाने के लिए है। मैं गाना बजाना सीखती हूँ - शौकीनों की लालसा पूर्ण करने के लिए नहीं, नर हृदय को कोमल बनाकर उसमें पूर्णता लाने के लिए, पुरुष की सोयी संवेदना जगाने के लिए। मैं स्वयं नहीं नाचती, वरन् जगत को नचाती हूँ।

🔵 मैं सीखती हूँ - सिखाने के लिए। शिक्षा के क्षेत्र में मेरा जन्मगत अधिकार है। मैं गुलाम नहीं पैदा करती। मैं प्रकट करती हूँ आदर्श, सृजन करती हूँ मानव, महामानव। महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, दयानन्द, विवेकानन्द, अरविन्द सब मेरी ही देन है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 अखण्ड ज्योति- सितम्बर 1996 पृष्ठ 8
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1996/September/v1.8

👉 Lose Not Your Heart Day 20

🌹  Do Not Stray

🔵 The desire to survive can quickly give way to the desire for wealth, fame, and material success, each of which is so powerful that an ordinary person can be easily swept away. Only those with their sights set on higher ideals can remain firm against the tide.

🔴 When you feel lost, remember when determination first took root in your heart. Make sure that your commitment to your cause is not ebbing away.

🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 आज का सद्चिंतन 20 July 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 20 July 2017


👉 खुशी की वजह.....

🔴 मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जाकर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।

🔵 अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जबकि आप खुद भी रोती हो।

🔴 उसने जवाब दिया भाई साहब इसके पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उनके जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इसकी पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है।

🔵 जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

🔴 इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता।

🔵 मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

🔴 अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया।

🔵 वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।

🔴 थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था।

🔵 बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धोकर स्कूल चल दिया। मै भी उसके पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उसके टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जाकर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इसके घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

🔴 खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

🔵 सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

🔴 वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

🔵 अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगातार रो रही थी, और मैने फौरन उसके टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो।

🔴 उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट लेलो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।

🔵 आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगाकर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

🔴 मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किसके लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इसलिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

🔵 तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे ? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

🔴 टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उनके बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

🔵 क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकालकर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते।
🔴 आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना !!!!

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...