बुधवार, 9 अगस्त 2017

👉 आत्मचिंतन के क्षण 9 Aug 2017

🔴 जरा सा लाभ होने में, सम्पत्ति मिलने, रूप सौंदर्य यौवन की तरंग आने, कोई अधिकार या पद प्राप्त हो जाने, पुत्र जन्मने, विवाह होने, आदि अत्यन्त ही तुच्छ सुखद अवसर आने पर फूले नहीं समाते, खुशी से पागल हो जाते हैं, ऐसे उछलते-कूदते हैं मानो इन्द्र का सिंहासन इन्हें ही प्राप्त हो गया हो। सफलता, बड़प्पन या अमीरी के अहंकार के मारे उनकी गरदन टेढ़ी हो जाती है, दूसरे लोग अपनी तुलना में उन्हें कीट पतंग जैसे मालूम पड़ते हैं और सीधे मुँह किसी से बात करने में उन्हें अपनी इज्जत घटती दिखाई देती है।

🔵 जरा ही हानि हो जाय, घाटा पड़ जाय, कोई कुटुम्बी मर जाय, नौकरी छूट जाय, बीमारी पकड़ ले, अधिकार छिने, अपमानित होना पड़े, किसी प्रयत्न में असफल रहना पड़े, अपनी मरजी न चले, दूसरों की तुलना में अपनी बात छोटी हो जाय तो उनके दुख का ठिकाना नहीं रहता। बुरी तरह रोते चिल्लाते हैं। चिन्ता के मारे सूख-सूख कर काँटा होते जाते हैं, दिन-रात सिर धुनते रहते हैं, भाग्य का कोसते हैं और भी, आत्महत्या आदि, जो कुछ बन पड़ता है करने से नहीं चूकते।

🔴 जीवन एक झूला है जिसमें आगे भी और पीछे भी झोंटे आते हैं। झूलने वाला पीछे जाते हुए भी प्रसन्न होता है और आगे आते हुए भी, यह अज्ञानग्रस्त, माया मोहित, जीवन विद्या से अपरिचित लोग बात-बात में अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं कभी हर्ष में मदहोश होते हैं तो कभी शोक में पागल बन जाते हैं। अनियंत्रित कल्पनाओं की मृग मरीचिका में उनका मन अत्यन्त दीन अभावग्रस्त दरिद्री की तरह व्याकुल रहता है। कोई उनकी रुचि के विरुद्ध बात कर दे तो क्रोध का पारापार नहीं रहता। इन्द्रियाँ उन्हें हर वक्त तरसाती रहती हैं, भस्मक रोग वाले की जठर ज्वाल के समान, भोगों की लिप्सा बुझ नहीं पाती। नशे में चूर शराबी की तरह “और लाओ, और लाओ, और चाहिए, और चाहिए” की रट लगाये रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए कभी भी सुख-शान्ति के एक कण का दर्शन होना भी दुर्लभ है।
                                        
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 अगर शांति चाहिए तो इससे दोस्ती कीजिए…

🔴 यदि आप शांति की तलाश में हैं तो अपनी दोस्ती मौन से भी कर ली जाए। पुरानी कहावत है मौन के वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं। मौन और चुप्पी में फर्क है। चुप्पी बाहर होती है, मौन भीतर घटता है। चुप्पी यानी म्यूटनेस जो एक मजबूरी है। लेकिन मौन यानी साइलेंस जो एक मस्ती है। इन दोनों ही बातों का संबंध शब्दों से है।

🔵 दोनों ही स्थितियों में हम अपने शब्द बचाते हैं लेकिन फर्क यह है कि चुप्पी में बचाए हुए शब्द भीतर ही भीतर खर्च कर दिए जाते हैं। चुप्पी को यूं भी समझा जा सकता है कि पति-पत्नी में खटपट हो तो यह तय हो जाता है कि एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे, लेकिन दूसरे बहुत से माध्यम से बात की जाती है।

🔴 भीतर ही भीतर एक-दूसरे से सवाल खड़े किए जाते हैं और उत्तर भी दे दिए जाते हैं। यह चुप्पी है। इसमें इतने शब्द भीतर उछाल दिए गए कि उन शब्दों ने बेचैनी को जन्म दे दिया, अशांति को पैदा कर दिया। दबाए गए ये शब्द बीमारी बनकर उभरते हैं। इससे तो अच्छा है शब्दों को बाहर निकाल ही दिया जाए।

🔵 मौन यानी भीतर भी बात नहीं करना, थोड़ी देर खुद से भी खामोश हो जाना। मौन से बचाए हुए शब्द समय आने पर पूरे प्रभाव और आकर्षण के साथ व्यक्त होते हैं। आज के व्यावसायिक युग में शब्दों का बड़ा खेल है। आप अपनी बात दूसरों तक कितनी ताकत से पहुंचाते हैं यह सब शब्दों पर टिका है। कुछ लोग तो सही होते हुए भी शब्दों के अभाव, कमजोरी में गलत साबित हो जाते हैं।

🔴 कोई आपको क्यों सुनेगा यदि आपके पास सुनाने लायक प्रभावी शब्द नहीं होंगे। इसलिए यदि शब्द प्रभावी बनाना है तो जीवन में मौन घटित करना होगा। समझदारी से चुप्पी से बचते हुए मौन को साधें। चुप्पी चेहरे का रौब है और मौन मन की मुस्कान। जीवन में मौन उतारने का एक और तरीका है जरा मुस्कराइए…

👉 कर्म योग द्वारा सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। (भाग 2)

🔵 यदि तुम व्यापारी या दुकानदार हो तो यह समझो कि मेरा यह व्यापार धन कमाने के लिये नहीं है श्री भगवान की पूजा करने के लिये है। लोभवृत्ति से जिन जिन के साथ तुम्हारा व्यवहार हो इन्हें लाभ पहुंचाते हुये अपनी आजीविका चलाने मात्र के लिये व्यापार करो। याद रखो- व्यापार में पाप लोभ से ही होता है। लोभ छोड़ दोगे तो किसी प्रकार से भी दूसरे का हक मारने की चेष्टा नहीं होगी।

🔴 वस्तुओं का तोल-नाप या गिनती कभी ज्यादा लेना और कम देना बढ़िया के बदले घटिया देना और घटिया के बदले बढ़िया लेना आढ़ती दलाली वगैरह हमें शर्त से ज्यादा लेना आदि व्यापारिक चोरियाँ लोभ से ही होती हैं। परन्तु केवल लोभ ही नहीं छोड़ना है, दूसरों के हित की भी चेष्टा करनी है। जैसे लोभी मनुष्य अपनी दुकान पर किसी ग्राहक के आने पर उसका बनावटी आदर सत्कार करके उससे ठगने की चेष्टा करते हैं, वैसे ही तुम्हें कपट छोड़कर ग्राहक को प्रेम के साथ सरल भाषा में सच्ची बात समझा कर उसका हित देखना चाहिए।

🔵 यह समझना चाहिये कि इस ग्राहक के रूप में साक्षात् परमात्मा ही आ गये हैं। इनकी जो कुछ सेवा मुझसे बन पड़े वही थोड़ी है। यों समझ कर व्यापार करोगे तो तुम श्री भगवान के कृपा पात्र बन जाओगे और यह व्यापार ही तुम्हारे लिए भगवन् प्राप्ति का साधन बन जायेगा।

🔴 यदि तुम दलाल हो तो व्यापारियों को झूँठी सच्ची बातें समझाकर अपनी दलाली के लोभ से किसी को ठगाओ मत। दोनों के रूप में ईश्वर के दर्शन कर सत्य और सरल वाणी से दोनों की सेवा करने की चेष्टा करो। याद रखो! अभी नहीं तो आगे चलकर तुम्हारी इस वृत्ति का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ेगा यदि न भी पड़े तो कोई हर्ज नहीं है, तुम्हारी मुक्ति का साधन तो हो ही जायेगा।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 अखण्ड ज्योति जनवरी 1960 पृष्ठ 10
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1960/January/v1.10

👉 आज का सद्चिंतन 9 Aug 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 9 Aug 2017


👉 साधु की संगति:-

🔵 एक चोर को कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला उसके खाने के लाले पड़ गए मरता क्या न करता मध्य रात्रि गांव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में ही घुस गया।

🔴 वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं अपने पास कुछ संचय करते तो नहीं रखते फिर भी खाने पीने को तो कुछ मिल ही जायेगा आज का गुजारा हो जाएगा फिर आगे की सोची जाएगी।

🔵 चोर कुटिया में घुसा ही था कि संयोगवश साधु बाबा लघुशंका के निमित्त बाहर निकले चोर से उनका सामना हो गया साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था पर उन्हें यह नहीं पता था कि वह चोर है।

🔴 उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! साधु ने बड़े प्रेम से पूछा- कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ? चोर बोला- महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूं।

🔵 साधु बोले- ठीक है, आओ बैठो मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूं तुम्हारा पेट भर जायेगा शाम को आये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते।

🔴 पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है यथा लाभ संतोष’ यही तो है साधु ने दीपक जलाया, चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिए।

🔵 साधु बाबा ने चोर को अपने पास में बैठा कर उसे इस तरह प्रेम से खिलाया, जैसे कोई माँ भूख से बिलखते अपने बच्चे को खिलाती है उनके व्यवहार से चोर निहाल हो गया।

🔴 सोचने लगा- एक मैं हूं और एक ये बाबा है मैं चोरी करने आया और ये प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूं यह भी सच कहा है- आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूं।

🔵 मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं जो समय पाकर जाग उठती हैं जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गए।

🔴 उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृत वर्षा सी दृष्टि का लाभ मिला तुलसी दास जी ने कहा है:-

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।

🔵 साधु की संगति पाकर आधे घंटे के संत समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा

🔴 फिर उसे लगा कि ‘साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी ! क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया!

🔵 लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा दयालु महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।

🔴 भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहा- बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे मेरे पास एक चटाई है इसे ले लो और आराम से यहीं कहीं डालकर सो जाओ सुबह चले जाना

🔵 नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- बेटा ! क्या हुआ?

🔴 रोते-रोते चोर का गला रूँध गया उसने बड़ी कठिनाई से अपने को संभालकर कहा-महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूं साधु बोले- भगवान सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं शरण में आने से बड़े-से-बड़ा अपराध क्षमा कर देते हैं उन्हीं की शरण में जा।

🔵 चोर बोला-मैंने बड़ी चोरियां की हैं आज भी मैं भूख से व्याकुल आपके यहां चोरी करने आया था पर आपके प्रेम ने मेरा जीवन ही पलट दिया आज मैं कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।

🔴 साधु के प्रेम के जादू ने चोर को साधु बना दिया उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके जीवन को परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।

🔵 महापुरुषों की सीख है, सबसे आत्मवत व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है संसार इसी की भूख से मर रहा है अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो।

🔴 प्रेम और स्नेह को उदारता से खर्च करो जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जाएगा भटके हुए व्यक्ति को अपनाकर ही मार्ग पर लाया जा सकता है, दुत्कार कर नहीं।

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...