गुरुवार, 10 अगस्त 2017

👉 Cost of body parts

🔴 A person went to a saint. ”I am unlucky. I don’t have anything. It’s better to die than to live such a life.” The saint said, “Do you have any idea of the things you have? If not then I’ll give you. What are you willing to take in return of your one arm, one leg and one eye? I am ready to give 100 gold coins for each of the parts.” The person said, “I can’t give them, how will I live without them?” The saint said, “Fool, you already have property worth crores, then also you are crying for having nothing”.

🔵 There are many such people who don’t recognize their true worth and consider themselves unlucky. They realize when some enlightened one teaches them lesson.

🌹 From Pragya Puran

👉 चांदी की छड़ी:-

🔵 एक आदमी सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी, जो बहती-बहती किनारे आ लगी थी।

🔴 वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह छड़ी लेकर टहलने लगा।

🔵 धूप चढ़ी तो उसका मन सागर में नहाने का हुआ। उसने सोचा, अगर छड़ी को किनारे रखकर नहाऊंगा, तो कोई ले जाएगा। इसलिए वह छड़ी हाथ में ही पकड़ कर नहाने लगा।

🔴 तभी एक ऊंची लहर आई और तेजी से छड़ी को बहाकर ले गई। वह अफसोस करने लगा और दुखी हो कर तट पर आ बैठा।

🔵 उधर से एक संत आ रहे थे। उसे उदास देख पूछा, इतने दुखी क्यों हो?

🔴 उसने बताया, स्वामी जी नहाते हुए मेरी चांदी की छड़ी सागर में बह गई।

🔵 संत ने हैरानी जताई, छड़ी लेकर नहा रहे थे? वह बोला, क्या करता? किनारे रख कर नहाता, तो कोई ले जा सकता था।

🔴 लेकिन चांदी की छड़ी ले कर नहाने क्यों आए थे? स्वामी जी ने पूछा।

🔵 ले कर नहीं आया था, वह तो यहीं पड़ी मिली थी, उसने बताया।

🔴 सुन कर स्वामी जी हंसने लगे और बोले, जब वह तुम्हारी थी ही नहीं, तो फिर दुख या उदासी कैसी?

🔵 मित्रों कभी कुछ खुशियां अनायास मिल जाती हैं और कभी कुछ श्रम करने और कष्ट उठाने से मिलती हैं।

🔴 जो खुशियां अनायास मिलती हैं, परमात्मा की ओर से मिलती हैं, उन्हें सराहने का हमारे पास समय नहीं होता।

🔵 इंसान व्यस्त है तमाम ऐसे सुखों की गिनती करने में, जो उसके पास नहीं हैं- आलीशान बंगला, शानदार कार, स्टेटस, पॉवर वगैरह और भूल जाता है कि एक दिन सब कुछ यूं ही छोड़कर उसे अगले सफर में निकल जाना है।

👉 आज का सद्चिंतन 10 Aug 2017

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 10 Aug 2017


👉 कर्म योग द्वारा सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। (भाग 3)

🔵 तुम हाकिम हो तो अपने स्वाँग के अनुसार दया पूर्ण न्याय करो तुम्हारे इजलास में कोई भी मुकदमा आवे तो उसे ध्यान से सुनो रिश्वत खाकर या अन्य किसी भी कारण से पक्षपात और अन्याय न करो। प्रत्येक न्याय चाहने वाले को भगवान का स्वरूप समझकर न्याय रूप सामग्री से उसकी पूजा करो उसे न्याय प्राप्ति में जहाँ तक हो सहूलियत कर दो और सेवा के भाव से ही अपने को मजिस्ट्रेट या जज समझो, अफसर नहीं। तुम्हारी इसी निष्काम सेवा से भगवान की कृपा होगी और तुम भगवन् प्राप्ति कर सकोगे। तुम वकील हो तो पैसे के लोभ से कभी अन्याय का पैसा मत लो, झूँठी गवाहियाँ न बनाओ, किसी को तंग करने की नीयत न रखो। प्रत्येक मुश्किल को भगवान का स्वरूप समझकर भगवत् सेवा के भाव से उचित मेहनताना लेकर उनका न्याय-पक्ष ग्रहण करो।

🔴 तुम चाहो तो भगवान की बड़ी सेवा कर सकते हो और सेवा से तुम्हें भगवन् प्राप्ति हो सकती है।

🔵 तुम डॉक्टर या वैध हो तो रोगी को भगवान का स्वरूप समझ कर उसके लिये सेवा के भाव से ही उचित पारिश्रमिक लेकर औषधि की व्यवस्था करें लोभ वश रोगी को सताओ नहीं। गरीबों का सदा ध्यान रक्खो। तुम अपनी निःस्वार्थ सेवा से भगवान के बड़े प्यारे बन सकते हो और भगवान प्राप्ति कर सकते हो।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 अखण्ड ज्योति जनवरी 1960 पृष्ठ 10

👉 आत्मचिंतन के क्षण 10 Aug 2017

🔴 यदि आप जल्दी आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो इसके लिए सजगता, होशियारी रखना बहुत जरूरी है आध्यात्मिक मार्ग में थोड़ी-सी सफलता थोड़ी सी मन की गंभीरता, एकाग्रता, सिद्धियों के थोड़े से दर्शन, थोड़े से अन्तर्यामी ज्ञान की शक्ति से ही कभी संतुष्ट मत रहो। इससे ज्यादा ऊंची चढ़ाइयों पर चलना अभी बाकी है।

🔵 सदा सेवा करने को तैयार रहो। शुद्ध प्रेम, दया और नम्रता सहित सेवा करो। सेवा करते समय कभी मन में भी खीझने या कुढ़ने का भाव मत आने दो। सेवा करते हुए मुख पर खेद और ग्लानि के भाव मत आने दो। ऐसा करने से जिसकी सेवा करते हो वह आपकी सेवा स्वीकार नहीं करेगा। आप एक अवसर खो दोगे। सेवा के लिए अवसर ढूँढ़ते रहो। एक भी अवसर को मत जाने दो बल्कि अवसर खुद बनालो।

🔴 अपने जीवन को सेवामय बना दो सेवा के लिए अपने हृदय में चाव तथा उत्साह भर लो। दूसरों के लिये प्रसाद बन कर रहो। यदि ऐसा करना चाहते हो तो आपको अपने मन को निर्मल बनाना होगा। अपने आचरण को दिव्य तथा आदर्श बनाना होगा। सहानुभूति, प्रेम, उदारता, सहनशीलता और नम्रता बढ़ानी होगी। यदि दूसरों के विचार आपके विचारों से भिन्न हों तो उनसे लड़ाई झगड़ा न करो। 
                                        
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 40)

🌹  अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।  

🔴 लोगों की दृष्टि में सफलता का ही मूल्य है। जो सफल हों गया, उसी की प्रशंसा की जाती है। देखने वाले यह नहीं देखते कि सफलता नीतिपूर्वक प्राप्त की हो या अनीतिपूर्वक। झूठे, बेईमान, दगाबाज, चोर, लुटेरे भी बहुत धन कमा सकते हैं। किसी चालाकी से कोई बड़ा पद या गौरव भी प्राप्त कर सकते हैं। आप लोग तो केवल उस कमाई और विभूति मात्र को ही देखकर उसकी प्रशंसा करने लगते हैं और समर्थन भी, पर सोचना चाहिए कि क्या यह तरीका उचित है? सफलता की अपेक्षा नीति श्रेष्ठ है। यदि नीति पर चलते हुए परिस्थितिवश असफलता मिली है तो वह भी कम गौरव की बात नहीं है। नीति का स्थायी महत्त्व है, सफलता का अस्थाई।
 
🔵 सफलता न मिलने से भौतिक जीवन के उत्कर्ष में थोड़ी असुविधा रह सकती है, पर नीति त्याग देने पर तो लोक, परलोक, आत्म-संतोष चरित्र, धर्म, कर्तव्य और लोकहित सभी कुछ नष्ट हो जाता है। ईसामसीह ने क्रूस पर चढ़कर पराजय स्वीकार की, पर नीति का परित्याग नहीं किया। शिवाजी, राणा प्रताप, बंदा वैरागी, गुरु गोविन्द सिंह, लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस आदि को पराजय का ही मुँह देखना पड़ा, पर उनकी वह पराजय भी विजय से अधिक महत्त्वपूर्ण थी। धर्म और सदाचार पर दृढ़ रहने वाले सफलता में नहीं कर्तव्य पालन में प्रसन्नता अनुभव करते हैं और इसी दृढ़ता को स्थिर रख सकने को एक बड़ी भारी सफलता मानते हैं। अनीति और असफलता में से यदि एक को चुनना पड़े तो असफलता को ही पसंद करना चाहिए, अनीति को नहीं। जल्दी सफलता प्राप्त करने के लोभ में अनीति के मार्ग पर चल पड़ना ऐसी बड़ी भूल है जिसके लिए सदा पश्चाताप ही करना पड़ता है।
   
🔴 वास्तव में नीतिमार्ग छोड़कर किसी मानवोचित सदुद्देश्य की पूर्ति की नहीं जा सकती। मनुष्यता खोकर पाई सफलता कम से कम मनुष्य कहलाने में गौरव अनुभव करने वाले के लिए प्रसन्नता की बात नहीं है। यदि कोई व्यक्ति ऊपर से नीचे जल्दी पहुँचने की उतावली में सीधा कूदकर हाथ-पैर तोड़ ले तो कोई उसे जल्दी पहुँचने में सफल हुआ नहीं कहना चाहेगा। इससे तो थोड़ा देर में पहुँचना अच्छा। मानवोचित नैतिक स्तर गँवाकर किसी एक विषय में सफलता की लालसा उपरोक्त प्रसंग जैसी विडम्बना ही है। हर विचारशील को इससे सावधान रहकर, नीतिमार्ग को अपनाए रहकर मनुष्यता के अनुरूप वास्तविक सफलता अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.55

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.9

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 128)

🌹  चौथा और अंतिम निर्देशन

🔵 बात जो विवेचना स्तर की चल रही थी, सो समाप्त हो गई और सार संकेत के रूप में जो करना था सो कहा जाने लगा।

🔴 ‘‘तुम्हें एक से पाँच बनना है। पाँच रामदूतों की तरह, पाँच पाण्डवों की तरह काम पाँच तरह से करने हैं, इसलिए इसी शरीर को पाँच बनाना है। एक पेड़ पर पाँच पक्षी रह सकते हैं। तुम अपने को पाँच बना लो। इसे सूक्ष्मीकरण कहते हैं। पाँच शरीर सूक्ष्म रहेंगे, क्योंकि व्यापक क्षेत्र को संभालना सूक्ष्म सत्ता से ही बन पड़ता है। जब तक पाँचों परिपक्व होकर अपने स्वतंत्र काम न सँभाल सकें, तब एक इसी शरीर से उनका परिपोषण करते रहो। इसमें एक वर्ष भी लग सकता है एवं अधिक समय भी। जब वे समर्थ हो जाएँ तो उन्हें अपना काम करने हेतु मुक्त कर देना। समय आने पर तुम्हारे दृश्यमान स्थूल शरीर की छुट्टी हो जाएगी।’’

🔵 यह दिशा निर्देशन हो गया। करना क्या है? कैसे करना है? इसका प्रसंग उन्होंने अपनी वाणी में समझा दिया। इसका विवरण बताने का आदेश नहीं है, जो कहा गया है, उसे कर रहे हैं। संक्षेप में इसे इतना ही समझना पर्याप्त होगा-१-वायु मण्डल का संशोधन, २-वातावरण का परिष्कार, ३-नवयुग का निर्माण, ४-महाविनाश का निरस्तीकरण समापन, ५-देवमानवों का उत्पादन-अभिवर्द्धन।

🔴 ‘‘यह पाँचों काम किस प्रकार करने होंगे, इसके लिए अपनी सत्ता को पाँच भागों में कैसे विभाजित करना होगा, भागीरथ और दधीचि की भूमिका किस प्रकार निभानी होगी, इसके लिए लौकिक क्रिया-कलापों से विराम लेना होगा। बिखराव को समेटना पड़ेगा। यही है-सूक्ष्मीकरण।’’

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v4.19

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...