रविवार, 20 अगस्त 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 47)

🌹  दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।

🔴 कोई व्यक्ति अपनी जरूरत के वक्त कुछ उधार हमसे ले जाता है तो हम यही आशा करते हैं कि आड़े वक्त की इस सहायता को सामने वाला व्यक्ति कृतज्ञतापूर्वक याद रखेगा और जल्दी से जल्दी इस उधार को लौटा देगा। यदि वह वापस देते वक्त आँखें बदलता है तो हमें कितना बुरा लगता है। यदि इसी बात को ध्यान में रखा जाए और किसी के उधार को लौटाने की अपनी आकांक्षा के अनुरूप ही ध्यान रखा जाए तो कितना अच्छा हो। हम किसी का उधार आवश्यकता से अधिक एक क्षण भी क्यों रोक कर रखें? हम दूसरों से यह आशा करते हैं कि वे जब भी कुछ कहें या उत्तर दें, नम्र, शिष्ट, मधुर और प्रेम भरी बातों से सहानुभूतिपूर्ण रुख के साथ बोलें।
 
🔵 कोई कटुता, रुखाई, निष्ठुरता, उपेक्षा और अशिष्टता के साथ जबाब देता है तो अपने को बहुत दुःख होता है। यदि यह बात मन में समा जाए, तो फिर हमारी वाणी में सदा शिष्टता और मधुरता ही क्यों न घुली रहेगी? अपने कष्ट के समय हमें दूसरों की सहायता विशेष रूप से अपेक्षित होती है। इस बात को ध्यान में जाए, तो फिर हमारी वाणी में सदा शिष्टता और मधुरता ही क्यों न घुली रहेगी? अपने कष्ट के समय हमें दूसरों की सहायता विशेष रूप से अपेक्षित होती है। इस बात को ध्यान में रखा जाए तो जब दूसरे लोग कष्ट में पड़े हों, उन्हें हमारी सहायता की अपेक्षा हो, तब क्या यही उचित है कि हम निष्ठुरता धारण कर लें? अपने बच्चों से हम यह आशा करते हैं कि बुढ़ापे में हमारी सेवा करेंगे, हमारे किए उपकारों का प्रतिफल कृतज्ञतापूर्वक चुकाएँगे, पर अपने बूढ़े माँ- बाप के प्रति हमारा व्यवहार बहुत ही उपेक्षापूर्ण रहता है। इस दुहरी नीति का क्या कभी कोई सत्परिणाम निकल सकता है?

🔴 हम चाहते हैं कि हमारी बहू- बेटियों की दूसरे लोग इज्जत करें, उन्हें अपनी बहन- बेटी की निगाह से देखें, फिर यह क्यों कर उचित होगा कि हम दूसरों की बहिन- बेटियों को दुष्टता भरी दृष्टि से देखें? अपने दुःख के समान ही दूसरों का जो दुःख समझेगा वह माँस कैसे खा सकेगा? दूसरों पर अन्याय और अत्याचार कैसे कर सकेगा? किसी की बेईमानी करने, किसी को तिरस्कृत, लांछित और जलील करने की बात कैसे सोचेगा? अपनी छोटी- मोटी भूलों के बारे में हम यही आशा करते हैं कि लोग उन पर बहुत ध्यान न देंगे, ‘क्षमा करो और भूल जाओ’ की नीति अपनाएँगे तो फिर हमें भी उतनी ही उदारता मन में क्यों नहीं रखनी चाहिए और कभी किसी से कोई दुर्व्यवहार अपने साथ बन पड़ा है तो उसे क्यों न भुला देना चाहिए?

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.65

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...