मंगलवार, 12 सितंबर 2017

👉 धर्मात्मा की परख

🔵 एक बार बड़ा भयानक दुर्भिक्ष पड़ा। लोग भूखों मरने लगे। मुसीबत के समय भी किसी का धर्म टिका हुआ है क्या, यह जाँचने के लिए स्वर्ग से तीन देवदूत पृथ्वी पर आए। उनने आपत्ति में धर्म को न त्यागने वाले सत्पुरुषों को ढूँढ़ना शुरू किया। अपनी यात्रा पूरी करके तीनों देवदूत एक स्थान पर मिले और उनने अपने अनुभव में आए धर्मात्माओं की चर्चा शुरू की। एक देवदूत ने कहा मैंने एक सेठ देखा जिसने भूखों के लिए सदावर्त लगा दिया है। हजारों व्यक्ति बिना मूल्य भोजन करते हैं। दूसरे देवदूत ने कहा मैंने इससे भी बड़े एक धर्मात्मा को देखा जिसने अपने गुजारे भर को रखकर, उसके पास जो धन दौलत थी वह सभी भूखों के लिए अर्पित कर दी।

🔴 तीसरे ने कहा यह क्या है, मेरा देखा हुआ धर्मात्मा आप दोनों के अनुभवों से बड़ा है। वह व्यक्ति बहुत ही भूखा था। कई दिन से अन्न न मिलने के कारण बहुत दुर्बल हो रहा था। उसे किसी उदार मनुष्य ने दो रोटी खाने को दी। पर खाने से पहल उसे ध्यान आया कि कही मुझसे भी अधिक भूखा कोई और तो नहीं है, उसने देखा तो पास ही एक ऐसा कुत्ता पड़ा था जिसके भूख से प्राण निकल रहे थे और वह उन दो रोटियाँ की और कातरता भरी दृष्टि से देख रहा था। उस भूखे मनुष्य के हृदय में करुणा जागी। उसने अपनी दोनों रोटियाँ उस कुत्ते को दे दी और खुद भूखा का भूखा ही रह गया।

🔵 तीनों देव दूत जब अपनी कथा सुना रहे थे तो दुर्भिक्ष का राक्षस चुपचाप छिपा खड़ा उनकी बातें सुन रहा था। कुत्ते की भूख मिटाने के लिए भूखा रहने वाले धर्मात्मा की कथा सुनकर उसका भी दिल पिघल गया। उसने कहा जब ऐसे धर्मात्मा इस देश में मौजूद है तो फिर यहाँ अब मेरा रहना नहीं तो सकता। दुर्भिक्ष चला गया और प्रजा के कष्ट दूर हुए।
श्रेष्ठ भावनाओं के सामने विपत्तियाँ देर तक नहीं ठहर सकती।

🌹 अखण्ड ज्योति मई 1961

👉 पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे (भाग 2)

🔵 प्राणियों का शास्त्रीय वर्गीकरण शरीरधारी और अशरीर दो भागों में किया गया है। अशरीरी वर्ग में— (1) पितर (2) मुक्त (3) देव (4) प्रजापति हैं। शरीरधारियों में (1) उद्भिज (2) स्वेदज (3) अंडज (4) जरायुज हैं।

🔴 चौरासी लाख योनियां शरीरधारियों की हैं। वे स्थूल जगत में रहती हैं और आंखों से देखी जा सकती हैं। दिव्य जीव जो आंखों से नहीं देखे जा सकते हैं उनका शरीर दिव्य होता है। सूक्ष्म जगत में रहते हैं। इनकी गणना तत्वदर्शी मनीषियों ने अपने समय में 33 कोटि की थी। तेतीस कोटि का अर्थ उनके स्तर के अनुरूप तेतीस वर्गों में विभाजित किये जा सकने योग्य भी होता है। कोटि का एक अर्थ वर्ग या स्तर होता है। दूसरा अर्थ है—करोड़। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि उस दिव्य सत्ताधारियों की गणना तेतीस करोड़ की संख्या में सूक्ष्मदर्शियों ने की होगी। जो हो उनका अस्तित्व है—कारण और प्रभाव भी।

🔵 जीवों के विकास क्रम को देखने से पता चलता है कि कितनी ही प्राचीन जीव जातियां लुप्त होती हैं और कितने ही नये प्रकार के जीवधारी अस्तित्व में आते हैं। फिर देश काल के प्रभाव से भी उनकी आकृति प्रकृति इतनी बदलती रहती है कि एक वर्ग को ही अनेक वर्गों का माना जा सके। फिर कितने ही जीव ऐसे हैं जिन्हें अनादि काल से जन-सम्पर्क से दूर अज्ञात क्षेत्रों में ही रहना पड़ा है और उनके सम्बन्ध में मनुष्य की जानकारी नहीं के बराबर है। कुछ प्राणी ऐसे हैं जो खुली आंखों से नहीं देखे जा सकते। सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों से ही उन्हें हमारी खुली आंखें देख सकती हैं। इतने छोटे होने पर भी उनका जीवन-क्रम अन्य शरीरधारियों से मिलता जुलता ही चलता रहता है।

🔴 अपनी पृथ्वी बहुत बड़ी है उस पर रहने वाले जलचर— थलचर— नभचर कितने होंगे, इसकी सही गणना कर सकना स्थूल बुद्धि और मोटे ज्ञान साधनों से सम्भव नहीं हो सकती, केवल मोटा अनुमान ही लगाया जा सकता है, पर सूक्ष्मदर्शियों के असाधारण एवं अतीन्द्रिय ज्ञान से साधारणतया अविज्ञान समझी जाने वाली बातें भी ज्ञात हो सकती हैं। ऋषियों की सूक्ष्म दृष्टि ने अपने समय में जो गणना की होगी उसे अविश्वसनीय ठहराने का कोई कारण नहीं जब कि जीवन शास्त्रियों की अद्यावधि खोज ने भी लगभग उतनी ही योनियां गिनली हैं। इसमें कुछ ही लाख की कमी है जो शोध प्रयास जारी रहने पर नवीन उपलब्धियों के अनवरत सिलसिले को देखते हुए कुछ ही समय में पूरी हो सकती है, वरन् उससे भी आगे निकल सकती है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/pitaron_ko_shraddha_den_ve_shakti_denge/v1.83

http://literature.awgp.org/book/pitaron_ko_shraddha_den_ve_shakti_denge/v2.7

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 12 Sep 2017


👉 आज का सद्चिंतन 12 Sep 2017


👉 बुलंद हौसले

🔴 एक कक्षा में शिक्षक छात्रों को बता रहे थे कि अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करो। वे सभी से पूछ रहे थे कि उनके जीवन का क्या लक्ष्य है? सभी विद्यार्थी उन्हें बता रहे थे कि वह क्या बनना चाहते हैं। तभी एक छात्रा ने कहा, 'मैं बड़ी होकर धाविका बनकर, ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतना चाहती हूं, नए रेकॉर्ड बनाना चाहती हूं।' उसकी बात सुनते ही कक्षा के सभी बच्चे खिलखिला उठे। शिक्षक भी उस लड़की पर व्यंग्य करते हुए बोले, 'पहले अपने पैरों की ओर तो देखो। तुम ठीक से चल भी नहीं सकती हो।'

🔵 वह बच्ची शिक्षक के समक्ष कुछ नहीं बोल सकी और सारी कक्षा की हंसी उसके कानों में गूंजती रही। अगले दिन कक्षा में मास्टर जी आए तो दृढ़ संयमित स्वरों में उस लड़की ने कहा, 'ठीक है, आज मैं अपाहिज हूं। चल-फिर नहीं सकती, लेकिन मास्टर जी, याद रखिए कि मन में पक्का इरादा हो तो क्या नहीं हो सकता। आज मेरे अपंग होने पर सब हंस रहे हैं, लेकिन यही अपंग लड़की एक दिन हवा में उड़कर दिखाएगी।'

🔴 उसकी बात सुनकर उसके साथियों ने फिर उसकी खिल्ली उड़ाई। लेकिन उस अपाहिज लड़की ने उस दिन के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह प्रतिदिन चलने का अभ्यास करने लगी। कुछ ही दिनों में वह अच्छी तरह चलने लगी और धीरे-धीरे दौड़ने भी लगी। उसकी इस कामयाबी ने उसके हौसले और भी बुलंद कर दिए। देखते ही देखते कुछ दिनों में वह एक अच्छी धावक बन गई। ओलिंपिक में उसने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया और एक साथ तीन स्वर्ण पदक जीतकर सबको चकित कर दिया। हवा से बात करने वाली वह अपंग लड़की थी अमेरिका के टेनेसी राज्य की ओलिंपिक धाविक विल्मा गोल्डीन रुडाल्फ, जिसने अपने पक्के इरादे के बलबूते पर न केवल सफलता हासिल की अपितु दुनियाभर में अपना नाम किया।

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...